25 साल बाद मुंबई लौटने वाली पूर्व बॉलीवुड अभिनेत्री और मॉडल ममता कुलकर्णी ने अपनी पूरी जिंदगी को एक नया मोड़ दे दिया है। पहले फिल्मी दुनिया की चमक-धमक और ग्लैमर से पहचानी जाने वाली ममता अब आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर हो चुकी हैं। उन्होंने प्रयागराज के महाकुंभ में भाग लेते हुए संन्यास लेने का निर्णय लिया है। 52 वर्षीय ममता ने दुनियावी सुख-सुविधाओं को त्यागकर सनातन धर्म की सेवा के प्रति अपनी निष्ठा जताई है।

उनकी इस आध्यात्मिक यात्रा का प्रमुख पड़ाव तब सामने आया जब उन्हें किन्नर अखाड़ा ने अपने महामंडलेश्वर के रूप में नियुक्त किया। यह एक बहुत ही प्रतिष्ठित और सम्मानजनक पद है, जो केवल समर्पित संतों और साधुओं को दिया जाता है। इस नई भूमिका के साथ, ममता कुलकर्णी को अब श्री यमाई ममता नंदगिरी के नाम से जाना जाएगा।

संन्यास की ओर यात्रा

ममता की यह आध्यात्मिक यात्रा अचानक नहीं हुई, बल्कि यह वर्षों की तपस्या और विचार-विमर्श का परिणाम है। अपनी नई भूमिका को स्वीकार करते हुए ममता ने बताया कि उनका झुकाव अध्यात्म की ओर लगभग 23 साल पहले शुरू हुआ था। उस समय उनके गुरु, चैतन्य गगन गिरी, ने उन्हें पहली बार दीक्षा दी थी। यह उनके जीवन का वह महत्वपूर्ण क्षण था, जिसने उन्हें भौतिक सुखों से दूर ले जाने और आत्मिक शांति की ओर प्रेरित किया।

 

हाल ही में प्रयागराज के महाकुंभ मेले में भाग लेने के दौरान, ममता ने संन्यास लेने का अंतिम निर्णय लिया। पहले उनकी योजना काशी (वाराणसी) जाने की थी, लेकिन कुंभ मेले में रहते हुए उन्हें एहसास हुआ कि उनका जीवन का उद्देश्य अब पूरी तरह से आध्यात्मिकता में समर्पित होना है।

उन्होंने अपने इस निर्णय को “जीवन का नया अध्याय” कहा और जोर देकर कहा, “मैं अब बॉलीवुड नहीं लौटूंगी। अब मेरी पूरी जिंदगी सनातन धर्म की सेवा के लिए समर्पित है।”

त्याग और पारंपरिक अनुष्ठान

ममता कुलकर्णी का यह परिवर्तन विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों के माध्यम से पूरा हुआ। महाकुंभ में उन्होंने सात घंटे तक तपस्या की, जो आत्मा की शुद्धि और ध्यान का एक गहन अभ्यास है। इसके बाद उन्होंने त्रिवेणी संगम में पवित्र स्नान किया, जिसे हिंदू धर्म में अत्यंत शुभ माना जाता है। इसके अलावा, उन्होंने पिंड दान भी किया, जो मृत आत्माओं की शांति के लिए किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण कर्मकांड है।

उनकी महामंडलेश्वर के रूप में नियुक्ति एक भव्य समारोह के माध्यम से हुई, जिसका आयोजन किन्नर अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने किया। इस अनुष्ठान में दुग्धाभिषेक किया गया, जिसमें ममता पर दूध अर्पित कर उन्हें शुद्ध और पवित्र माना गया। इस अवसर पर सैकड़ों भक्तों और संतों ने भाग लिया और उनकी आध्यात्मिक यात्रा का साक्षी बने।

इसके बाद ममता ने घोषणा की कि वह 29 जनवरी को मौनी अमावस्या स्नान में भी भाग लेंगी। मौनी अमावस्या एक विशेष दिन है, जब भक्त मौन रहकर पवित्र स्नान करते हैं। यह आत्मा की शुद्धि और नई शुरुआत का प्रतीक है।

किन्नर अखाड़े की भूमिका

ममता की इस आध्यात्मिक यात्रा में किन्नर अखाड़ा ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। किन्नर अखाड़ा एक अनूठा आध्यात्मिक संगठन है, जो विशेष रूप से समाज के हाशिये पर रहने वाले लोगों, जैसे ट्रांसजेंडर समुदाय, को धार्मिक जीवन में शामिल करने के लिए जाना जाता है। लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के नेतृत्व में यह अखाड़ा सनातन धर्म की समावेशिता को बढ़ावा देता है।

ममता कुलकर्णी की नियुक्ति इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने धर्म और आध्यात्मिकता के प्रति गहन समर्पण दिखाया है। त्रिपाठी ने बताया कि ममता पिछले डेढ़ साल से किन्नर अखाड़ा के संपर्क में थीं और इस बड़े बदलाव के लिए खुद को तैयार कर रही थीं। उन्होंने ममता की प्रशंसा करते हुए कहा, “यह देखकर बहुत अच्छा लगता है कि एक अलग पृष्ठभूमि से आने वाला व्यक्ति सनातन धर्म और आध्यात्मिक सेवा के प्रति इतना समर्पित हो सकता है।”

ग्लैमर की दुनिया से दूरी

ममता कुलकर्णी का यह बदलाव उनके पुराने जीवन से बिल्कुल विपरीत है। 1990 के दशक में ममता बॉलीवुड की सबसे बोल्ड और ग्लैमरस अभिनेत्रियों में से एक थीं। उनकी लोकप्रियता चरम पर थी, लेकिन उन्होंने फिल्मी करियर को छोड़कर केन्या में व्यवसायी विकी गोस्वामी से शादी कर ली।

हालांकि, उनकी यह नई जिंदगी विवादों से अछूती नहीं रही। ममता और उनके पति को केन्या में एक मल्टी-करोड़ ड्रग रैकेट के प्रमुख आरोपी के रूप में नामित किया गया। इन विवादों के बावजूद, ममता का यह निर्णय कि वह अब पूरी तरह से आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर होंगी, उनके आत्म-परिवर्तन और नई पहचान को दर्शाता है।

ममता ने अपने विवादित अतीत पर चर्चा करते हुए कहा कि उनका ध्यान अब पूरी तरह से उनके आध्यात्मिक सफर पर है। उन्होंने कहा, “मैं सनातन धर्म की सेवा करना चाहती हूं,” और यह स्पष्ट किया कि उनका उद्देश्य अब केवल अध्यात्म और मानवता की सेवा है।

आध्यात्मिक समुदाय का समर्थन

ममता के इस परिवर्तन को आध्यात्मिक समुदाय ने बड़े उत्साह और सम्मान के साथ स्वीकार किया है। स्वामी अवधेशानंद, एक वरिष्ठ संत, ने ममता के संन्यास के निर्णय की सराहना करते हुए कहा, “हर व्यक्ति को दुनियावी जीवन त्यागकर मानवता की सेवा का अधिकार है। यह अच्छी बात है कि वह एक उच्च उद्देश्य के लिए खुद को समर्पित करना चाहती हैं।”

किन्नर अखाड़े के अन्य संतों ने भी ममता की सच्चाई और समर्पण पर विश्वास जताया। उनकी कठोर साधना और अखाड़े के अनुशासन को अपनाने की क्षमता ने उन्हें इस आध्यात्मिक समुदाय में एक मजबूत स्थान दिलाया।

सनातन धर्म की सेवा में नई शुरुआत

ममता कुलकर्णी की इस नई यात्रा ने आत्म-परिवर्तन की एक प्रेरणादायक कहानी प्रस्तुत की है। यह साबित करता है कि जीवन में किसी भी समय एक नया उद्देश्य खोजा जा सकता है। भूतकाल को पीछे छोड़ते हुए और सनातन धर्म के आदर्शों में खुद को समर्पित करते हुए, ममता अब दूसरों को भी आध्यात्मिकता की ओर प्रेरित करना चाहती हैं।

अपने अगले कदमों की योजना बनाते हुए ममता ने कहा कि काशी की यात्रा, जो उनके कार्यक्रम में थी, अब स्थगित कर दी गई है। वह वर्तमान में अपने संन्यास के व्रतों और आध्यात्मिक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।

महाकुंभ में संतों और भक्तों के बीच उनका यह परिवर्तन एक प्रेरणादायक घटना रही। उनकी यात्रा यह दर्शाती है कि आध्यात्मिकता और धार्मिक मूल्यों की प्रासंगिकता आधुनिक जीवन में भी बनी हुई है।

ममता कुलकर्णी ने कहा, “मैं महाकुंभ की भव्यता को देखने और संतों के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए खुद को भाग्यशाली मानती हूं। यह मेरे जीवन की एक नई शुरुआत है, और मैं मानवता की सेवा करने के लिए तत्पर हूं।”


यह पुनर्लेखन ममता कुलकर्णी की आध्यात्मिक यात्रा, उनके अनुष्ठानों और किन्नर अखाड़ा के साथ उनके जुड़ाव को विस्तार से दर्शाता है। यह उनकी कहानी को एक प्रेरणादायक और सकारात्मक रूप में प्रस्तुत करता है।

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